Brand: Suruchi Prakashan
Product Code: Suruchi-3409
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सुधी पाठकों को सादर नमस्कार!

प्रस्तुत पुस्तक ‘स्वदेशी समाज’ के प्रकाशन के समय भारत अपनी स्वतंत्रता का ‘अमृत महोत्सव’ मना रहा है, पूरा विश्व कोरोना नाम की महामारी के अंधकार से बाहर निकल, उदय होते सूर्य की भाँति भारतवर्ष को देख रहा है और अपनी विश्वगुरु की भूमिका के अनुरूप एक सशत्तफ़, संयमित भारत खड़ा होता दिख रहा है।

इस अद्भुत बेला में इस लेख को पढ़ने पर अनेक प्रकार के भाव एवं प्रशन उभर कर आये। उस समय एक प्रयोग करने का निर्णय हुआ। स्नातक एवं स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने वाले चार-चार छात्र-छात्रओं को चिन्हित कर उन्हें यह लेख पढ़कर एक ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशन के लिए एक साथ आने को बताया गया। प्रमुख बात यह थी कि लेख का नाम, लेखक का नाम एवं लेख का काल विद्यार्थियों से छुपाया गया। जब सभी विद्यार्थी संपादक मंडल के साथ ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशन के लिए एकत्रित आए, तब उनका परिचय लेख, लेखक एवं लेख के काल से करा कर चर्चा आरम्भ हुई, सभी विद्यार्थियों के चेहरे विस्मय से भरे थे, उस समय जो प्रश्न इस चर्चा में आए उनमें से कुछ का उल्लेख यहाँ करना उचित होगा -

 - आज से 120 वर्ष पूर्व जब भारत में शासन व्यवस्था, समाज व्यवस्था के आपसी संबंध एवं उत्तरदायित्व इतने स्पष्ट थे तो स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद हम अपनी ही व्यवस्थाओं को अपनाने की अपेक्षा विदेशी व्यवस्था के साथ आगे क्यों बढ़े?

 - जब भारत के गाँव बौद्धिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक रूप से इतने सशत्तफ़ एवं आत्मनिर्भर थे, तब हमने विदेशी, शहरीकरण-मॉडल को अपना कर आगे बढ़ने का निश्चय क्यों किया?

 - भारत का जो विचार गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने देश के सामने रखा, आज उस विचार के वाहक देश में कौन लोग हैं?

 - भारत का मूल विचार, जिसको अनेक महापुरुषों सहित गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने लिपिबद्ध किया, उस विचार को आज आधारहीन, संकीर्ण एवं सांप्रदायिक जैसी संज्ञाएँ कौन लोग दे रहे हैं?

 - आर्यों के संबंध में गढ़ी गई कहानियों की वास्तविकता, जिनकी स्पष्टता डॉ- मनमोहन वैद्य ने प्रस्तावना में की है, से भारत को कितना नुकसान हुआ?

प्रस्तुत पुस्तक सुधी पाठकों के समक्ष भी ऐसे अनेक प्रश्न खड़े कर, भारतीय इतिहास का एक बार पुनः अध्ययन करने, आज की वैश्विक समस्याओं के संदर्भ में भारतीय व्यवस्थाओं की महत्ता को समझने एवं भारतीय विचार के वास्तविक वाहकों की पहचान करने के द्वार खोलेगी।

इस शृंखला में सुरुचि प्रकाशन गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा राष्ट्रवाद विषय पर जापान, यूरोप एवं अमेरिका में दिए गए उद्बोधनों एवं समकालीन अन्य भारतीय मनीषियों/ स्वतंत्रता सेनानियों जैसे लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर एवं गाँधी जी द्वारा धर्म, हिन्दुत्व, स्वदेशी एवं बुनियादी शिक्षा आदि का भी पुनरावलोकन कर उन्हें सुधी पाठकों के समक्ष प्रकाशित करने का प्रयास करेगा।

प्रस्तुत पुस्तक बांग्ला भाषा में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा दिए गए उद्बोधन का हिंदी अनुवाद है। प्रकाशक का उद्देश्य गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के विचारों से भारत एवं विश्व को अवगत कराना मात्र है। अनुवाद की दृष्टि से किसी शब्द विशेष से कोई भिन्न अर्थ प्राप्त हो तो उसे समग्रता में भावों के साथ पढ़ने का प्रयास करें, प्रकाशक का उद्देश्य किसी प्रकार किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है।

Product Details
Pages 48
Binding Style Paper Back
Language Hindi
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